नई दिल्ली: बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले एक संस्था ने दावा किया है कि पिछले ढाई सालों में देश भर में एक लाख से अधिक बच्चों को तस्करी से बचाया गया है। इन बच्चों को देश के विभिन्न भागों के ईंट भट्टा उद्योग, निर्माण स्थल, दुकानें, चाय की दुकानें, फुटपाथ से बचाया गया है। बाल तस्करी एक गंभीर अपराध है और भारत के विभिन्न हिस्सों में व्याप्त मानवाधिकार उल्लंघनों के सबसे गंभीर रूपों में से एक है। इस जघन्य कृत्य के शिकार बच्चे शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा के साथ-साथ दुर्व्यवहार, यातना और शोषण का शिकार होते हैं।
देश भर में बाल संरक्षण के लिए काम करने वाले 250 से अधिक संगठनों के नेटवर्क, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (जेआरसी) ने बुधवार को बताया कि अप्रैल 2023 से सितंबर 2025 के बीच, इसके सहयोगी संगठनों के माध्यम से विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 1.10 लाख बच्चों को तस्करी से बचाया गया. आंकड़ों के अनुसार, बचाए गए बच्चों की सबसे अधिक संख्या तेलंगाना से थी. कुल संख्या 30,267 थी. दूसरे स्थान पर बिहार से 10,211 बच्चे, उत्तर प्रदेश से 9,445 और राजस्थान से 8,278 बच्चे थे. इसमें दावा किया गया है कि उपरोक्त अवधि में दिल्ली से कुल 6,564 बच्चों को बचाया गया।
बाल अधिकार विशेषज्ञ की राय
जेआरसी की वरिष्ठ सलाहकार (नीति एवं अनुसंधान) ज्योति माथुर ने कहा, “राज्य सरकार के सक्रिय कदमों से सैकड़ों बच्चों को बचाया जा सका है। लापता और तस्करी किए गए बच्चों का पता लगाने के लिए राज्य में 2015 से हर साल नियमित रूप से ‘ऑपरेशन मुस्कान’ या ‘स्माइल’ चलाया जा रहा है। इसके अलावा, चेहरे की पहचान करने वाला ऐप ‘दर्पण’ बच्चों का पता लगाने में मदद करता है।”
बाल तस्करी के प्रमुख कारण
बाल अधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि बाल तस्करी के प्रमुख कारकों में शैक्षिक सुविधाओं की कमी, गरीबी, जागरुकता की कमी, सामाजिक कमजोरियां और भेदभाव, सस्ते और लचीले श्रम की मांग और परंपरा आदि शामिल हैं।











