देहरादूनः उत्तराखंड की राजनीति में जैसे ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त फैसले और विकास के ठोस कदम तेज़ किए हैं, वैसे ही “भ्रम फैलाने की राजनीति” फिर से सक्रिय हो उठी है।मुख्यमंत्री के हालिया बयान ने न सिर्फ़ यह संकेत दिया कि उनके खिलाफ कुछ ताकतें संगठित तरीके से नकारात्मक माहौल बना रही हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि इस बार जंग बाहर नहीं, भीतर से छेड़ी गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा-कुछ लोग साज़िश के तहत राज्य को अस्थिरता और अराजकता की ओर धकेलना चाहते हैं।जो भी विकास कार्य चल रहे हैं, उनमें बाधाएँ डालकर जनता को गुमराह किया जा रहा है। एक फेक नैरेटिव गढ़कर राज्य की छवि को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की जा रही है।
उनके इस बयान को सामान्य प्रतिक्रिया नहीं कहा जा सकता। अगर यह विपक्ष पर हमला होता, तो मुख्यमंत्री खुलकर नाम लेते। लेकिन उन्होंने किसी विपक्षी दल या नेता का ज़िक्र तक नहीं किया-
इसका सीधा अर्थ है कि “कोहराम भीतर का है, साज़िश अपनों में पनप रही है।” धामी सरकार के लिए यह वक्त दोहरी चुनौती का है । एक तरफ़ राज्य में विकास की गति बनाए रखना, और दूसरी तरफ़ दुष्प्रचार की राजनीति से निपटना।
सवाल अब यही है—
क्या उत्तराखंड फिर उसी पुरानी राह पर धकेला जा रहा है जहाँ अस्थिरता की राजनीति विकास की रफ़्तार पर भारी पड़ जाती थी.?
या फिर मुख्यमंत्री धामी इस बार उस साज़िश को खुली आंखों से पहचान कर जवाब देने को तैयार हैं.?








