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उत्तराखंड भू कानून पर क्यों उठ रहे सवाल, जानकार क्यों बोल रहे नही लाते तो अच्छा होता, जानें डिटेल्स

By: SAMACHAR INDIA

On: Friday, February 28, 2025 4:55 PM

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भू कानून को लेकर किसने कहा खोदा पहाड़ निकला चूहा, क्या है ये कानून

देहरादून: उत्तराखंड में भू कानून हमेशा एक बड़ी बहस का विषय रहा है. धामी सरकार ने एक बार फिर से सख्त भू कानून लाने का दावा किया है. जानकार इस कानून पर क्या कुछ कहते हैं और इसकी क्या कुछ कानूनी पेचीदगियां हैं, आइए जानते हैं.

बताया जा रहा है कि साल 2018 में तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार के बनाए हुए तमाम भू कानून रद्द कर दिए गए हैं। नए कानून के अनुसार आवासीय उपयोग के लिए 250 वर्गमीटर भूमि खरीदने के लिए शपथ पत्र जरूरी
अगर राज्य से बाहर के लोग उत्तराखंड में जमीन लेना चाहें, तो उन्हें एफिडेविट देना होगा और मकसद बताना होगा। उत्तराखंड के 11 जिलों में बाहरी लोग खेती और बागवानी के लिए जमीन नहीं ले सकेंगे। हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर जिलों को इससे बाहर रखा गया है।
पहाड़ी इलाकों में जमीन पर नए सिरे से बात होगी।
जिला मजिस्ट्रेट जमीन खरीदने पर मुहर नहीं लगा सकेंगे
अब आपको बताते हैं नए भू कानून के लिए क्या तैयारियां और क्या प्रावधान हैं.

नए भू कानून के प्रावधान

  • जमीन की खरीद-बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाएगा ताकि डेटा व्यवस्थित रहे।
  • पोर्टल से यह भी पता लगेगा कि कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं हो रही।
  • अगर कोई जमीन नियम तोड़कर खरीदी-बेची जाएगी तो सरकार उसे अपने कब्जे में ले सकेगी।
  • उद्योग, होटल, चिकित्सा समेत विभिन्न प्रयोजनों के लिए भी भूमि खरीद सकेंगे। इसके लिए संबंधित विभागों से भूमि अनिवार्यता प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होगा।
  • भू-कानून नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद, छावनी परिषद क्षेत्र की सीमा में आने वाले और समय-समय पर सम्मिलित किए जा सकने वाले क्षेत्रों को छोड़कर संपूर्ण राज्य में लागू होगा।

हाल ही में उत्तराखंड में हुए बजट सत्र में उत्तराखंड की धामी सरकार ने सख्त भू कानून का दावा करते हुए उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) संशोधित अधिनियम 2025 को विधानसभा में पारित किया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन में इस प्रस्ताव को रखते हुए दावा किया कि उत्तराखंड में जमीनों की खरीद फरोख्त पर इस कानून के आने के बाद लगाम लगेगी.

मुख्यमंत्री ने जब सदन में जब इस प्रस्ताव को रखा, तो इसमें किए गए तमाम संशोधन की भी जानकारी दी. इसमें उन्होंने मुख्य तौर से बताया था कि उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में कृषि और बागवानी की भूमि को खरीदने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में जमीन खरीदने के लिए शासन से अनुमति लेनी होगी. सरकार द्वारा इन बिंदुओं को ही प्रमुख रूप से सामने रखा गया. भू कानून को अगर पढ़ें, तो यह कानून उत्तराखंड के सभी 13 जिलों के निकाय क्षेत्र में प्रभावी नहीं है.

यानी कि पर्वतीय जिलों में भी किसी नगर पालिका या नगर पंचायत में भूमि खरीद पर कोई रोक नहीं है. उल्टा मैदान के 2 जिलों में जमीन खरीदने की अब छूट दे दी गई है. SDC फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने इस कानून को “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” की संज्ञा दी है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि इस कानून को बनाने से बेहतर होता कि सरकार इस कानून को ना ही बनाती. पूर्व आईएएस अधिकारी एसएस पांगती ने तो इस कानून की प्रस्तावना यानी इसके उद्देश्य में ही गलतियां निकालीं.

अनूप नौटियाल ने कहा कि प्रदेश के अन्य शहरों में भी यही कानून लागू होता है. ज्यादातर लोग शहरी इलाकों में बसना पसंद करते हैं. वहीं की लैंड प्राइम लैंड होती है. सरकार का यह नया भू कानून यहां पर पूरी तरह से जमीन खरीदने की अनुमति देता है।

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि- जब उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो उत्तराखंड में गठित पहली तिवारी सरकार पर यह दबाव था कि उत्तराखंड में जमीनों की खरीद फरोख्त पर लगाम लगायी जाए.

तिवारी सरकार में हिमाचल के ‘टेंडेंसीज एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 की धारा 118’ को कॉपी करते हुए उत्तराखंड में पहले अध्यादेश लाया गया. जिसमें स्पष्ट था कि कोई भी गैर कृषक व्यक्ति उत्तराखंड में कृषि योग्य जमीन नहीं खरीद सकता है. यदि किसी को आवासीय कारण की वजह से जरूरत है, तो वह 500 स्क्वायर मीटर घर बनाने के लिए खरीद सकता है. लेकिन वह व्यक्ति और उसकी आने वाली पीढ़ी को उत्तराखंड के भूमिधर होने की मान्यता नहीं दी गई थी. अफसोस यह हुआ कि जब यह अध्यादेश विधानसभा में एक्ट बनने के लिए गया, तो विजय बहुगुणा कमेटी ने अपनी रिकमेंडेशन पर इसमें धारा 2 जोड़ दी. धारा 2 में यह जोड़ा गया कि यह कानून नगर निकाय क्षेत्रों में प्रभावी नहीं होगा.

वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत बताते हैं कि तिवारी सरकार के बाद 2007 में आई भाजपा की खंडूड़ी सरकार में इस कानून में बाकी कुछ बदलाव नहीं किए गए. लेकिन 500 वर्ग मीटर आवासीय भूमि खरीदने की जो छूट थी, उसे और सख्त करके केवल ढाई सौ वर्ग मीटर आवासीय भूमि खरीदने की छूट दी गई।

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